Jaivik Kheti Ke Aayam (Hindi)

by Khan, Khalil

ISBN: 9789354618680
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Imprint : Daya Publishing House
Year : 2024
Price : Rs. 9395.00
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Author Profile

डॉ- खलील खान ने एम-एस-सी-(कृषि) कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान, आर-बी-एस- कॉलेज, बिचपुरी, आगरा (उ-प्र-) से प्रथम श्रेणी में तथा पी-एच-डी- कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान विभाग, नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या (उ-प्र-) से प्राप्त की। डॉ- खान के 31 से अधिक शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर केे विभिन्न शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं तथा मृदा विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर तीन किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्तमान में डूा- खान चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर में शिक्षण एवं शोध कार्यों में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। डॉ- डी-पी- सिंह ने कानपुर विश्वविद्यालय से उद्यान विज्ञान में पी-एच-डी- की उपाधि सन् 1992 में प्राप्त की है। डॉ- सिंह वर्तमान में चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर के शाकभाजी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष एवं संयुक्त निदेशक शोध के पद पर कार्यरत हैं। इनकेे द्वारा 135 से अधिक शोध पत्र, 12 पुस्तकें, 6 तकनीकी बुलेटिन, 12 से अधिक फोल्डर और 6 ैत्म्च्े प्रकाशित किये गये हैं। विभिन्न क्षेत्रें में उत्कृष्ट योगदान हेतु इन्हें 2008 में चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा विश्वविद्यालय रत्न से सम्मानित किया गया। डॉ- एच-जी- प्रकाश ने एम-एस-सी- (कृषि) की शिक्षा गोबिन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर और पी-एच-डी- भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) से प्राप्त की है। वर्तमान में, डॉ- एच- जी- प्रकाश निदेशक शोध के पद के दायित्यों का निर्वहन कर रहे हैं। डॉ- प्रकाश द्वारा अब तक विभिन्न शोध पत्रिकाओं में 88 शोध पत्र, बुक चैप्टर और 35 पुस्तकें/पुस्तिकायें और सात तकनीकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई हैं। डॉ- प्रकाश को उत्कृष्ट कार्यों हेतु विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कारोें से सम्मानित किया गया है। डॉ- आर-एल- आर्या ने पोस्ट ग्रेजुुएट तथा डाक्टेरेट की उपाधियाँ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली से सस्य विज्ञान विषय में ग्रहण की है। लगभग 30 वर्षों सेे वैज्ञानिक एवं प्रसारकर्ता के रूप में आपने कृषि विषय में अनेक पुस्तकों का लेखन किया है एवं आपके कई लेख राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किये गए हैं। आपको कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करनेे के कारण कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। डॉ- अनिल कुमार ने एम-एस-सी- (कृषि) उद्यान विज्ञान एवं पी-एच-डी- उद्यान विज्ञान विभाग, अमर सिंह कॉलेज, लखावटी (उ-प्र-) से उत्तीर्ण की है। डॉ- कुमार के 35 से अधिक शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ- कुमार वर्तमान में चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के शोध निदेशालय कानपुर में शोध कार्यों में कार्यरत है। डॉ- कुमार को सब्जी- फसलों के जैविक खेती के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त है। डॉ- डी-आर- सिंह, कुलपति, चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर के पद पर कार्यरत है। आपका जन्म वर्ष 1964 में हुआ था, डॉ- सिंह का कार्य अनुभव 28 वर्ष से अधिक का है। इस दौरान आप हार्टीकल्चर, प्रोफेसर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के संस्थान में निदेषक के पद पर कार्यरत रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप द्वारा विभिन्न योजनाओं को मूर्तरूप, मार्गदर्शन, समन्वयन एवं कार्यान्वित किया गया है। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा आपको 16 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें आई-सी-ए-आर- फखरूदीन अली अहमद, लेफ्रिटनेंट गवनर्स कमेन्डेसन, डॉ- आर-एस- परोदा पुरस्कार, उत्कृष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार, लिम्का बुक नेशनल रिकॉर्ड तथा फेलो पुरस्कार आदि प्रमुख हैं। आप द्वारा विभिन्न बागवानी फसलों की 17 प्रजातियों के साथ-साथ विभिन्न फसलों की कृषि तकनीकियां भी विकसित की है तथा 14 विभिन्न संस्थाओं द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं का सफलतापूर्वक संचालन मुख्य अन्वेशक के रूप में किया है। आपके राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 206 शोधा पत्र, 13 पुस्तकें, 50 बुक चैप्टर तथा प्रशिक्षण बुलेटिन प्रकाशित हुये हैं, साथ ही आप विभिन्न नीतिगत निर्णयों हेतु गठित समितियों एवं वैज्ञानिक समितियों के अध्यक्ष, विशेषज्ञ एवं सदस्य भी है। आप ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्यानिकी के क्षेत्र में ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक हैं।

About The Book

देश की बढ़ती जनसंख्या की उदरपूर्ति के लिए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर विशेष रूप से जोर दिया गया, जिसके फलस्वरूप हम खाद्यान्न में तो आत्मनिर्भर हो गये, परन्तु मृदा की दशा खराब हो गयी। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशी/रोगनाशी रसायनों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से मृदा की मौलिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल/नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जैविक कृषि से तात्पर्य उच्च गुणवत्तायुक्त एवं रसायनयुक्त फसलोत्पादन एवं मृदा, जल, वायु, पर्यावरण तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को समाप्त करते हुए अधिक एवं टिकाऊ फसलोत्पादन करने से है। इस पुस्तक में जैविक खेती की उन सभी विधियों को सम्मिलित किया गया है, जिससे मृदा, जल तथा वायु को प्रदूषित किये बिना दीर्घकालीन समय तक उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सके। यह पुस्तक जैविक खेती अपनाने वाले कृषकों के लिये विशेष रूप से उपयोगी है एवं प्रसार कार्यकर्ताओं, नीति निर्धारकों, शिक्षकों तथा अध्ययनरत छात्र-छात्रओं के लिये उपयोगी साबित होगी।

Table of Contents

भूमिका अ 1- प्रस्तावना 1 2- जैविक खेती की आवश्यकता 9 3- जैविक खेती के सिद्धान्त 15 4- जैविक खेती के उद्देश्य 23 5- जैविक खेती की विधियां 33 6- जैविक प्रबंधन एक समन्वित मार्ग 41 7- पौधों के पोषण में जैविक उर्वरकों का महत्व 47 8- जैविक खेती के अन्तर्गत फसलोत्पादन 53 9- कम उत्पादन लागत पद्धतियाँ 61 10- कार्बनिक खादें 79 11- मृदा स्वास्थ्य एवं समृद्धीकरण में जैविक खेती 117 12- जैविक खेती में जैव उर्वरकों की भूमिका 121 13- एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आई-पी-एम-) 135 14- एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्धन 141 15- बायोडायनामिक खेती 145 16 शून्य बजट की शाश्वत योगिक कृषि 153 17- पादप रोगों के निदान में प्राकृतिक उत्पादों का महत्व 155 18- पौध कीट एवं रोग नियंत्रण में प्राकृतिक उत्पाद 161 19- कृषि में जैविक नियंत्रण 169 20- मानव स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरण में जैविक खेती का योगदान 177 21- गौ पालन-जैविक खेती का आधार 181 22- मृदा का जैविक रूपान्तरण 185 23- सामाजिक सुरक्षा का सशक्त उपाय-अग्निहोत्र 189 24- जैविक खेती के विषय में भ्र्रान्तियां 199 25- जैविक खेती के विषय में पौराणिक गाथायें 201 26- जैविक खेती से बीज एवं बीजोपचार 211 27- रसायन मुक्ति का प्रमाण पत्र लेना हुआ आसान 215 28- जैविक खेती के कृषक प्रक्षेत्र पर परिणाम 219 29- जैविक खेती द्वारा वनरोज (नील गाय) नियंत्रण 225 30- रसायन मुक्त पफ़ल एवं सब्जी उत्पादन तकनीक 229 31- फसल अवशेष प्रबन्धन मृदा के लिए वरदान 239 32- संक्षेप में नये तरीके 245 33- सहभागिकता एवं जैविक प्रतिभूति प्रणाली 251 परिशिष्ट 257